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अक्षय मोती: June 2012
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अक्षय मोती. पूज्य पिताजी को समर्पित मेरी अभिव्यक्ति. Monday, June 25, 2012. प्रेरक बाते. आज कुछ हट कर लिखना का मन कर रहा रहा है .मसलन कुछ प्रेरक प्रसंग कि तरह! दोस्तों ये तो एक प्रसंग कल्ला जी के माध्यम से था! क अब ऐसा प्रसंग है जो आज आधी शताब्दी के बाद भी नागा बाबा के प्रति नत मस्तक हो जाते है! नागा बाबा. मूलतः बीकानेर ( राजस्थान ) के निवासी थे ये सब कहते है! चलो खाना खा लो बन ही रहा है! नहीं ' सभी ने कहा! सभी मौन . फिर अचानक चौक कर बोले ' ' ओह! भोले नाथ! नागा बाबा कि ब...Subscribe to: Posts (Atom).
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अक्षय मोती: February 2013
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अक्षय मोती. पूज्य पिताजी को समर्पित मेरी अभिव्यक्ति. Friday, February 15, 2013. लघु कथाएँ. यथार्थ '. माँ कितना अच्छा होता कि हम भी धनी होते तो हमारे भी यूही नौकर-चाकर होते ऐशोआराम होता '. सब किस्मत कि बात है, चल फटा फट बर्तन साफ़ कर, और भी काम अभी करना पड़ा है! माँ-बेटी बर्तन मांझते हुए बातें रही थी! बात तो ठीक है., बस हमे भूखो मरना पड़ेगा! मैं समझा नहीं? सुनील गज्जाणी. सुनील गज्जाणी. Subscribe to: Posts (Atom). लघु कथाएँ. मेरी पसंद. मेरी भावनायें. कुछ तो रह जाता है . पाळसियो. View my complete profile.
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अक्षय मोती: November 2013
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अक्षय मोती. पूज्य पिताजी को समर्पित मेरी अभिव्यक्ति. Monday, November 25, 2013. चुनावी हाइकू. चुनावी हाइकू. देश प्रेम कि डोर. बाते हुई चुनावी. मुद्दे , हे! एक दूजे की. बस टांग खिचाई. ये , राजनीति? वोट का तो ये. हक़ है मानव को. सही उम्र पे! मतदान की. है एक भाषा , देखो. सुनो , हो विचार! शक्ति वोट की. आजमा के तो देखो. गर्व करोगे! सुनील गज्जाणी. सुनील गज्जाणी. Subscribe to: Posts (Atom). चुनावी हाइकू. मेरी पसंद. मेरी भावनायें. कुछ तो रह जाता है . पाळसियो. सुनील गज्जाणी. Moolchand Pranesh Memorial Prize.
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अक्षय मोती: March 2013
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अक्षय मोती. पूज्य पिताजी को समर्पित मेरी अभिव्यक्ति. Saturday, March 30, 2013. दिनाक २ ५ /३ /२ ० १ ३ को! सुनील गज्जाणी. Saturday, March 23, 2013. एक ये २ ३ मार्च भी , मेरे जनक को समर्पित! एक ये २ ३ मार्च भी , मेरे जनक को समर्पित! आज पूरे भारत वर्ष में ' शहीद दिवस ' मनाया जा रहा है . अमर शहीद भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव की स्मृति में! अपने प्रिय पिता के रूप में देह से देहान्तर होने तक! सुनील गज्जाणी. Subscribe to: Posts (Atom). मेरी पसंद. मेरी भावनायें. कुछ तो रह जाता है . पाळसियो. Simple template. P...
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अक्षय मोती: April 2013
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अक्षय मोती. पूज्य पिताजी को समर्पित मेरी अभिव्यक्ति. Saturday, April 13, 2013. विक्रम संवत २ ० ७ ० मंगल मय रहे. विक्रम संवत २ ० ७ ० मंगल मय रहे. चारो और शान्ति कही कोई नव वर्ष की धूम नहीं जो इंग्लिश सालो में होती है! इतना अंतर क्यूँ हो गया है इन के बीच! ये सामूहिक ही दोष है! जिस में हमने अपने सनातन वर्ष को दोयम बना दिया , ये आत्मिक सवाल है सभी के लिए! कही भी चिपके चिपके बाल नहीं , आधुनिक वेश . और हाथो में ...बस एक बहस की सी बात है! हम भले ही कितने ही आधुनिक ह...Subscribe to: Posts (Atom). Short Play-...
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अक्षय मोती: December 2011
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अक्षय मोती. पूज्य पिताजी को समर्पित मेरी अभिव्यक्ति. Friday, December 9, 2011. राजस्थानी कवितावां. तीन नानी नानी कवितावां. बिंदी. मिनख अर पाना सूं. सांगो पांग सगपन करती! रेखावा जीवन अर जीवन रे बारे री. खासम ख़ास व्याकरण! इछावां. जीवन अर सागे. विस -अमरित. सुनील गज्जाणी. सुनील गज्जाणी. Subscribe to: Posts (Atom). राजस्थानी कवितावां. मेरी पसंद. मेरी भावनायें. कुछ तो रह जाता है . पाळसियो. सुनील गज्जाणी. ओस री बूंदा.- Rajasthani poetry collection. Translated in Gujrati by Dr. Rajanikant S. Shah.
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अक्षय मोती: August 2011
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अक्षय मोती. पूज्य पिताजी को समर्पित मेरी अभिव्यक्ति. Friday, August 19, 2011. तीन हाइकु. खूब बरसे. विरह में सावन. लिए ये नैन! कुम्हार का है चाक. ज्यूं चाहो घड़ो! सींचा है खूब. मेह ने इन सूखे. दरख्तों को तो! सुनील गज्जाणी. सुनील गज्जाणी. Labels: हाईकू. Subscribe to: Posts (Atom). तीन हाइकु. मेरी पसंद. मेरी भावनायें. कुछ तो रह जाता है . खुद मुख्तार औरत व अन्य कविताएँ- देवयानी भारद्वाज. पाळसियो. सुनील गज्जाणी. ओस री बूंदा.- Rajasthani poetry collection. Translated in Gujrati by Dr. Rajanikant S. Shah.
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ओम पुरोहित: थार में प्यास
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2405; ओम पुरोहित "कागद"-. हिंदी. राजस्थानी. 2405; कागद हो तो हर कोई बांचै. शुक्रवार, 27 मई 2011. थार में प्यास. जब लोग गा रहे थे. पानी के गीत. हम सपनों में देखते थे. प्यास भर पानी।. समुद्र था भी. रेत का इतराया. पानी देखता था. चेहरों का. या फिर. चेहरों के पीछे छुपे. पौरूष का ही. मायने था पानी।. तलवारें. बताती रहीं पानी. राजसिंहासन. पानीदार के हाथ ही. रहता रहा तब तक।. अब जब जाना. पानी वह नहीं था. दम्भ था निरा. बंट चुका था. दुनिया भर का पानी. नहीं बंटी. हमारी अपनी थी. आज भी थिर है. Dr N K Daiya. उत्तर...
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