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आखर कलश

खुद मुख्तार औरत व अन्य कविताएँ- देवयानी भारद्वाज. नरेन्द्र व्यास. Friday, June 28, 2013. रोज गढती हूं एक ख्वाब. सहेजती हूं उसे. श्रम से क्लांत हथेलियों के बीच. आपके दिए अपमान के नश्तर. अपने सीने में झेलती हूं. सह जाती हूं तिल-तिल. हंसती हूं खिल-खिल. देवयानी भारद्वाज. मैं अपना चश्मा बदलना चाहती हूँ. मेरे पास भरोसे की आँख थी. मैंने पाया कि चीज़ें वैसी नहीं थीं. जैसी वे मुझे नज़र आती थीं. शायद मुझे वैसी दिखाई देती थीं वे. फिर एक दिन. कुछ ऐसी किरकिरी. हुई महसूस. की छिन गया है. चलते हुए उसके ह...दोस्...

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खुद मुख्तार औरत व अन्य कविताएँ- देवयानी भारद्वाज. नरेन्द्र व्यास. Friday, June 28, 2013. रोज गढती हूं एक ख्वाब. सहेजती हूं उसे. श्रम से क्लांत हथेलियों के बीच. आपके दिए अपमान के नश्तर. अपने सीने में झेलती हूं. सह जाती हूं तिल-तिल. हंसती हूं खिल-खिल. देवयानी भारद्वाज. मैं अपना चश्मा बदलना चाहती हूँ. मेरे पास भरोसे की आँख थी. मैंने पाया कि चीज़ें वैसी नहीं थीं. जैसी वे मुझे नज़र आती थीं. शायद मुझे वैसी दिखाई देती थीं वे. फिर एक दिन. कुछ ऐसी किरकिरी. हुई महसूस. की छिन गया है. चलते हुए उसके ह...दोस&#2381...
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खुद मुख्तार औरत व अन्य कविताएँ- देवयानी भारद्वाज. नरेन्द्र व्यास. Friday, June 28, 2013. रोज गढती हूं एक ख्वाब. सहेजती हूं उसे. श्रम से क्लांत हथेलियों के बीच. आपके दिए अपमान के नश्तर. अपने सीने में झेलती हूं. सह जाती हूं तिल-तिल. हंसती हूं खिल-खिल. देवयानी भारद्वाज. मैं अपना चश्मा बदलना चाहती हूँ. मेरे पास भरोसे की आँख थी. मैंने पाया कि चीज़ें वैसी नहीं थीं. जैसी वे मुझे नज़र आती थीं. शायद मुझे वैसी दिखाई देती थीं वे. फिर एक दिन. कुछ ऐसी किरकिरी. हुई महसूस. की छिन गया है. चलते हुए उसके ह...दोस&#2381...

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आखर कलश: 5/1/13 - 6/1/13

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Archive for 5/1/13 - 6/1/13. बस्ती का पेड़ - नन्द भारद्वाज. नरेन्द्र व्यास. Thursday, May 30, 2013. भारद्वाज. की कविता- " बस्ती का पेड़. बाहर से आने वाले आघात का. उलटकर कोई उत्तर नहीं दे पाता. वह चलकर जा नहीं जा सकता. किसी निरापद जगह की आड़ में -. जड़ें डूबी रहती हैं. पृथ्वी की अतल गहराई में. वहीं से पोखता रहता है. वह हर एक टहनी और पत्ती में. जीवन संचार. ऐसा घेर-घुमेर छायादार पेड़. हजारों-हजार पंछियों का. रैन-बसेरा. पीढ़ियों की पावन कमाई. वह पानीदार पेड़. जमीन की कोख में,. इसी के आसरे. समय बदल गया. व&#23...

2

आखर कलश: 9/1/12 - 10/1/12

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Archive for 9/1/12 - 10/1/12. नीरज गोस्वामी की ग़ज़लें. नरेन्द्र व्यास. Saturday, September 8, 2012. जब कुरेदोगे उसे तुम, फिर हरा हो जाएगा. ज़ख्म अपनों का दिया,मुमकिन नहीं भर पायेगा. वक्त को पहचान कर जो शख्स चलता है नहीं. वक्त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा. शहर अंधों का अगर हो तो भला बतलाइये. चाँद की बातें करो तो, कौन सुनने आयेगा. जिस्म की पुरपेच गलियों में, भटकना छोड़ दो. प्यार की मंजिल को रस्ता, यार दिल से जायेगा. दूर होंठों से तराने हो गये. मगर जो माँ पकाती है, वह...गुजारो सा...हमारे व&#...जहा...

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आखर कलश: 6/1/11 - 7/1/11

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Archive for 6/1/11 - 7/1/11. नरेश मेहन की कविताएँ. नरेन्द्र व्यास. Sunday, June 26, 2011. 1 पत्ता. दूर से उडता हुआ. एक पत्ता. मेरे कन्धे पर. बैठ गया. मैंने पूछा. कहाँ से आए हो. अनायास गुमसुम से।. वह सकपकाया. मायूस हुआ. फिर बोला. शहर से आया हूँ. जबरी डाल से छिटक कर. न चाहते हुए भी. उसी नन्हीं डाल से. बिछुड कर।. अब मेरा. दिल नहीं लगता. दम घुटता है मेरा. धुएँ में उदास. पेड कीशाख पर।. मुझे दो कंधा. मेरे भाई. मुझे अपने. साथ ले चलो. शहर से दूर. किसी नदी किनारे. किसी खेत पर. 2 मेरी छत. मेरी छत. तब अपना सर.

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आखर कलश: 7/1/11 - 8/1/11

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Archive for 7/1/11 - 8/1/11. कुछ दोहे- सुभाष नीरव. नरेन्द्र व्यास. Sunday, July 31, 2011. राह कठिन कोई नहीं, मन में लो यदि ठान।. परबत भी करते नमन, थम जाते तूफ़ान॥. जब तक सागर ना मिले, नदी नदी कहलाय।. जिस दिन सागर से मिले, नदी कहाँ रह जाय॥. हमने तो बस प्रेम से, दी उसको आवाज़।. जग ने देखा चौंक कर, लोग हुए नाराज॥. प्रेम नहीं सौदा यहां, ना कोई अनुबंध।. प्रेम एक अनुभूति है, जैसे फूल सुगंध॥. छल, कपट और झूठ से, जो शिखरों पर जाय. वो ही करते पीठ पर, छिप कर गहरे वार॥. सुभाष नीरव. शिक्षा :. स्नातक।. ई मेल :. चा...

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आखर कलश: 8/1/12 - 9/1/12

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Archive for 8/1/12 - 9/1/12. काश तुम्‍हारा दिल कोई अख़बार होता- शाहिद अख्तर की कविताएँ. नरेन्द्र व्यास. Friday, August 31, 2012. मोहम्‍मद शाहिद अख्‍तर. बीआईटी, सिंदरी, धनबाद से केमिकल इं‍जीनियरिंग में बी. ई. मोहम्‍मद शाहिद अख्‍तर. छात्र जीवन से ही वामपंथी राजनीति से जुड़ गए। अपने छात्र जीवन के समपनोपरांत आप इंजीनियर को बतौर. अभिरुचियाँ:. संप्रति:. मोहम्‍मद शाहिद अख्‍तर. फ्लैट नंबर - 4060. वसुंधरा सेक्‍टर 4बी. गाजियाबाद - 201012. उत्‍तर प्रदेश. कविताएँ. झांकती, झलकती. भरने के लिए. और सहस्राब&#...काश...

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सृजन-यात्रा: August 2013

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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. शुक्रवार, 9 अगस्त 2013. सुभाष नीरव. सुभाष नीरव. साहित्य. समीक्षा की जानी-मानी पत्रिका. 8217; के लिए लिखते रहे हैं।. एक सप्ताह में उन्होंने दोनों पुस्तकें पढ़ डाली थीं। आज सुबह वह लिखने बैठ गए थे।. अभी भी उनके भीतर बहुत कुछ उमड़-घुमड़ रहा था जिसे वे रोक नहीं पाए -. 8216; कल की लेखिका. अपने आप को जाने समझती क्या है. केवल दो किताबें आई थीं. 8212; एक कहानी संग्रह और एक उपन्यास. दूसरे को कुछ समझती ही नहीं।. तीसरे दिन ही लौट आई। चलो. जी हाँ।. अखिल जी. केन्द्र...8217; के ...

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सृजन-यात्रा: January 2013

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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. बुधवार, 2 जनवरी 2013. मित्रो. नववर्ष के उपलक्ष्य में मेरी कहानी. नए साल की धूप. राजस्थान पत्रिका. रविवार) के अंक में प्रकाशित हुई है।. इसे मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से आप सबसे भी साझा करना चाहता हूँ। आशा है. आपको पसंद आएगी और आप अपनी राय से मुझे अवगत कराएंगे।. नये साल की धूप. सुभाष नीरव. रोज की तरह आज भी बिशन सिंह की. आँख मुँह-अँधेरे. ही खुल गई. जबकि रात देर तक पति-पत्नी. खुल जाए. फिर बिशन सिंह को नींद कहाँ।. माई से करवा लिया कर. पर इसे चैन कहाँ! पौचा लग&#2...इस व&#236...

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सृजन-यात्रा: May 2014

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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. शनिवार, 24 मई 2014. डॉ माधव सक्सेना 'अरविंद' मुंबई से 'कथाबिंब' नाम की एक हिंदी पत्रिका वर्षों से निकालते आ रहे हैं। यह. त्रैमासिक पत्रिका है और अब तक इसके 124 अंक छप चुके है और हाल ही इस. आपकी राय मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण रहेगी।. सुभाष नीरव. चिट्ठियाँ. हैं।. उन्हें. चिट्ठियाँ. पाठकों. निःसंदेह. पत्रिका. होंगी।. अधिकांश. सहानुभूति. दिखाने. चिट्ठी. क्यों. पाठकों. बेसब्री. बेसब्री. चिट्ठियों. परिन्दे. खींचते. हैं।. शब्दों. परिन्दे. ज़िन्दगी. हिंदी. हों।. प्रा...साह...

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सृजन-यात्रा: December 2012

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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. शनिवार, 1 दिसंबर 2012. मित्रो, कभी-कभी सृजन में भी सूखा आ जाता है। कई-कई महीने कुछ भी सृजनात्मक नहीं लिखा जाता. में भेजते ही स्वीकृत हो गई और जल्द ही प्रकाशित भी हो गई। इसे आप. के दिसम्बर 12 अंक में देख-पढ़ सकते हैं।. अपने ब्लॉग. सृजन-यात्रा. सृजन-यात्रा. में पाठकों के सम्मुख रखता रहूँ। अत: इस बार. आपके समक्ष है।. आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।. सुभाष नीरव. सुभाष नीरव. आकाश पर पहले एकाएक काले बादल छाये. पता नहीं अन्दर कौन हो. एकाएक बारिश तेज़ ह&#23...गरमी कई द&#2367...

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सृजन-यात्रा: March 2013

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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. शुक्रवार, 8 मार्च 2013. मित्रो, इधर नई लिखी लघुकथाओं में से एक लघुकथा. लाजवंती. शीर्षक की लघुकथा हरियाणा साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका. हरिगंधा. के जनवरी 13 अंक में. समकालीन कहानी. के अंतर्गत प्रकाशित हुई है। इसे भी मैं. सृजन-यात्रा. ब्लॉग के माध्यम से आप सबसे साझा कर रहा हूँ।. सुभाष नीरव. लाजवंती. सुभाष नीरव. रसोई साफ की. क्यों. कोई खास बात है. कोई ख़ास बात तो नहीं। बस. एक-एक करके इस्तेमाल करती रहूँ. घर पर ही।. बीबी जी. कहीं जाना है. दोपहर के भोजन ...शाम क&#23...

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सृजन-यात्रा: July 2013

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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. सोमवार, 15 जुलाई 2013. 8216;एक और कस्बा’ आपसे साझा कर रहा हूँ।. सुभाष नीरव. एक और कस्बा. सुभाष नीरव. देहतोड़ मेहनत के बाद. रात की नींद से सुबह जब रहमत मियां की. ख खुली तो उनका मन पूरे मूड में था। छुट्टी का दिन था और कल ही उन्हें पगार मिली थी। सो. सुक्खन थैला और पैसे लेकर जब बाजार पहुँचा. उसकी नज़र ऊपर आकाश में तैरती एक कटी पतंग पर पड़ी। पीछे-पीछे. पर नाकामयाब रहा। देखते ही देखते. चेहरे पर विजय-भाव लिये! काफी देर बाद. प्रस्तुतकर्ता. सुभाष नीरव. नई पोस्ट. मैं औ...यात...

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नरेश विद्यार्थी: September 2011

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मेरा यह बलोग उन लोगों को समर्पित है जो किसी प्रभावशाली, दौलतमन्द की लाठी से हांकी गई भैंस की चपेट में आ कर घायल हो गए,ज़ख़्मी हो गए।. Sunday, September 25, 2011. नाराज़ बादल से मनुहार. आ बरस ले,. अपनी ख़्वाहिशें पूरी कए ले,. ऎ मेरे नाराज़ बादल-. तूं मेरा है और. ये टूटा मकां भी मेरा है,. टूटा नहीं है तुझ से. मेरा नाता-. टूटे आशियाने को तो,. फिर से सजा-संवार लूगां,. मग़र तुझ से टूटे नाते को,. फिर से जोड़ना मुश्किल होगा,. इसे तो,. कोई कारीगर भी. नहीं जोड़ सकता-. इस लिए तूं बरस,. Saturday, September 3, 2011.

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सृजन-यात्रा. सुभाष नीरव का रचना-सफ़र. गुरुवार, 2 जनवरी 2014. सुभाष नीरव. चाँदनी. पाया।. स्त्री. झांका. घुसा।. मैंने. पहुँचने. पहुँची।. हूँ।. बढ़ाया।. मैंने. लौटेंगे।. होगी।. हूँ।. मुस्करा. दिया।. करेंगे. आँखों. बेचैनी. चाँदनी. पुराने. दिनों. यादें. थीं।. दीवाना. बातें. निहारता. मैंने. विस्फारित. कुछ ‘ठक’ से. मैंने. मैंने. झुकाये. प्रस्तुतकर्ता. सुभाष नीरव. लेबल: लघुकथाएं. 1 टिप्पणी:. दीपक 'मशाल'. ने कहा…. 3 जनवरी 2014 को 1:34 am. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. Read in your own script.

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