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तरंगें: एक स्त्री का दर्द !
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तरंगें. मेरे मन से आकस्मिक रूप से फूटने वाली कवितायें! Saturday, December 22, 2007. एक स्त्री का दर्द! न्यायप्रियता के लिये. जाने जाते हैं हम हिन्दुस्तानी. सहस्त्र वर्षों से. अत: यकीन है मुझे पूरा,. कि मिलेगा मुझे आज,. न्याय सही. हिन्दुस्तानी समाज से. मुझ से लोग लूटते हैं. हर दिन सेवा, पैसा, सबकुछ. मेरी बहिन पर तो लोग लुटाते हैं,. हर दिन माया शतसहस्त्र. पीडित करते हैं मुझे. अत: हुई मैं अबला अनावृत. जनता के समक्ष सिर्फ इक बार. प्रशंसा करते हैं बहिन की. मेरे,. इस तरह इक बार मैं ने. हिन्दी. शास्...उनका...
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तरंगें: पतिव्रता
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तरंगें. मेरे मन से आकस्मिक रूप से फूटने वाली कवितायें! Wednesday, December 19, 2007. पतिव्रता. वे बोली,. कोई न होगी पतिव्रता. मुझसे अधिक. तभी तो मैं. पति के गृहस्थी के. कामों में,. कभी भी नहीं करती. नुक्ताचीनी. कहां आता है उनको. ढंग से खाना पकाना या,. बच्चे खिलाना. कब उन्होंने बनाया है. स्वादिष्ट खाना,. या ठीक से बुहारा घर,. या साफ पोंछा लगाया फर्श पे. कब मुझे हुई है तृप्ति. उनकी तनख्वाह से. लेकिन कब किसी से. की है शिकायत. मेरी इन कठिनाईयों. के बारे में! एवं इंडियन फोटोस. निरीक्षण. बहुत खूब. उन्ह&#...
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तरंगें: संस्कृति !!
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तरंगें. मेरे मन से आकस्मिक रूप से फूटने वाली कवितायें! Tuesday, December 18, 2007. संस्कृति! उन्हें. अपनी संस्कृति से है. बेहद प्यार. अत: बीबीसी एवं. द्वारा प्रस्तुत कोई भी. 8220;देसी” प्रोग्राम. कभी नहीं करते हैं मिस. वे बोले. ताज्जुब है कि. नयागांव अभी भी. है पिछडा. ढेर से वायदे,. अनगिनित हवाई किले,. सैकडों कागजी कूंए,. बात बात पर उन के लिये. नई नई घोषणाये,. एवं साल में कम से कम. दीवाली पर राशन,. सभी तो हम ने दिलाये हैं. कितनी प्रगति हुई है हमारे. जो हम कल तक नहीं थे,. निरीक्षण. हिन्दी. शास्...