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अनुवाद: तेरा मेरा नाता है क्या - संदीप खरे
http://anuwaad.blogspot.com/2007/09/teraa-meraa-naataa-hai-kyaa.html
कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. गुरुवार, सितंबर 13, 2007. तेरा मेरा नाता है क्या - संदीप खरे. तेरा मेरा नाता है क्या? तुम देती हो. मै लेता हूँ. तुम लेती हो. मै देता हूँ. घडी घडी में रूप है बदलता. समय का पहिया सदा है चलता. हम दोनो में फर्क है कैसा. आपस में एक जैसा है क्या? मुझे पता है उसे निन्द न आई होगी. सपने चल रहें होंगे आँखो में. करवट बदलेगी. तनहाई होगी. सुखदुख बरसे हम पर जब भी. अलग अलग है सफर हमारे. भावानुवा...इसे ब...
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अनुवाद: बिजली ना बादल - संदीप खरे
http://anuwaad.blogspot.com/2007/02/megha-nasataa-poem-by-sandeep-khare.html
कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. शनिवार, फ़रवरी 24, 2007. बिजली ना बादल - संदीप खरे. बिजली ना बादल लगे फिर मोर कैसे नाचने. सिर्फ इतना है कि मैने तुमको देखा सामने. शोख इन गालों पे देखो छुप के आती लालियाँ. छुपके छुपके जब से मुझको तुम लगे हो देखने. बिजली ना बादल लगे फिर मोर कैसे नाचने. कितनी कोमल फूल मेरे उम्र तेरी है अभी. रंग हो गए बोझ लगती पंखुडीयाँ है कापने. कविता: मेघ नसता वीज नसता. कवि: संदीप खरे. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. अक्&#...
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अनुवाद: पगलाया (वेड लागलं) - संदीप खरे
http://anuwaad.blogspot.com/2008/03/ved-laagala-sandeep-khare_08.html
कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. शनिवार, मार्च 08, 2008. पगलाया (वेड लागलं) - संदीप खरे. झोंके में झलक गई, क्या अदाएँ रख गई. आसमाँ कि गहराई अखियोंमें दिख गई. पगलाया, पगलाया मैं, पगलाया मैं, पगलाया. काली काली अखियोंने बेकरार किया. उसको ही ढुंढता है बार बार जिया. देखकर चाँद मौज खाए हिचकोले. रात भर पडतें है कविता के ओले. पगलाया, पगलाया मैं, पगलाया मैं, पगलाया. जमीं और आसमाँ का फर्क भूल गया. बढ रही आग अब धधकती जाए. Thank you for the wonder...
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अनुवाद: नामंजूर - संदीप खरे
http://anuwaad.blogspot.com/2008/10/namanjoor-sandeep-khare.html
कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. रविवार, अक्तूबर 26, 2008. नामंजूर - संदीप खरे. सम्हल सम्हल के नाँव चलाना नामंजूर. मुझे हवा की राह देखना नामंजूर. तय करता मैं दिशा भी बहते पानी की. मौज हिलाए जैसे, हिलना नामंजूर. नहीं चाहिये मौसम की सौगात मुझे. नहीं चाहिये शुभ शकुनों का साथ मुझे. मन करता हो वही महुरत है मेरा. मौका देख के खेल खेलना नामंजूर. अपने हाथों अपनी मौत मै मरता हूँ. झगडा वगडा और मनाना है हरदम. कवी: संदीप खरे. Tushar Joshi, Nagpur.
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अनुवाद: अब तो मै बस - संदीप खरे
http://anuwaad.blogspot.com/2007/02/ab-to-mai-sandeep-khare.html
कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. रविवार, फ़रवरी 25, 2007. अब तो मै बस - संदीप खरे. अब तो मै बस दिन की बही के कागज़ भरता हूँ. रटे रटाए तोते जैसा साईन करता हुँ. हर झंझट से हर टंटे से रहता हूँ मै दूर. जवाब कैसे? असल में मुझको सवाल ना मंजूर. मैने किया है समझौता अब इन सब प्रश्नों से. ना वो सताए और सताए जाए ना मुझसे. नाग की तरह बधीरता की बीन पे हिलता हूँ. अब तो छाती मेरी केवल डर भर लेती है. कवि: संदीप खरे. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. वेड&#...
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अनुवाद: वीर मराठे दौडे सात दिवाने - कुसुमाग्रज
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कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. शनिवार, मार्च 24, 2007. वीर मराठे दौडे सात दिवाने - कुसुमाग्रज. वीर मराठे दौडे सात दिवाने - कुसुमाग्रज. धन्य हो गये सुनकर आज कहानी. भाग आये रण से अपने सेनानी. औरतें भी होंगी शर्म से पानी पानी. दिन में ये कैसा घेरा अंधेरे ने. वीर मराठे दौडे सात दिवाने. वो सभी शब्द थे कठोर पीडादायी. जला गये छुकर दिल की गहराई. भागना नहीं है रीत मराठी भाई. आग ही आग थी बाजू से उपर से. मूल कविता: सात. हिन्दी...इस गीत क&...
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अनुवाद: दूर देस गए बाबूजी - संदीप खरे
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कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. सोमवार, अक्तूबर 27, 2008. दूर देस गए बाबूजी - संदीप खरे. दूर देस गए बाबूजी. गई काम के लिये माँ. भारी निंद से हैं आँखे. मगर घर में कोई ना. मेरी छोटी नन्ही सी जाँ. कैसे संजोके रखी है. यूँही अकेले खेल के. थक हार ये गयी है. बस करो सो जाओ बेटे. कोई कहता भी है ना. भारी निंद से हैं आँखे. मगर घर में कोई ना. पता नहीं क्यों भला. स्कूल में होती है छुट्टी. बात करता ना कोई. मगर घर में कोई ना. नई पोस्ट. सदस्यत&...
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अनुवाद: पल भर को साँसों का भर आना - संदीप खरे
http://anuwaad.blogspot.com/2007/03/laagate-anaam-odh-sandeep-khare.html
कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. गुरुवार, मार्च 29, 2007. पल भर को साँसों का भर आना - संदीप खरे. सांग सख्या रे इस अल्बम मे से संदीप खरे और सलील कुलकर्णी का. एक बडा ही प्यारा गाना आज प्रस्तुत है।. पल भर को सांसो का भर आना. और मेरे होठ कपकपा जाना. कैसा तेरा यादों में आना. तनन धीम त देरेना तेरेना. तनन धीम त देरेना तेरेना. हसना वो कपडों सा ही फिका फिका. मेरा ही रंग हो जाता था गहरा. कंगन की आहट खनकती है. इसे ईमेल करें. टिप्पण...पुर...
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अनुवाद: तुम घर में ना होते जब - संदीप खरे
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कुछ मराठी कविताएं जो पुनः पुनः पढने का मन करता है ऐसी कविताओं का हिंदी अनुवादकरने का ये एक प्रयास है।. गुरुवार, अप्रैल 05, 2007. तुम घर में ना होते जब - संदीप खरे. तुम घर में ना होते जब. दिल टुकडे हो जाता है. जीवन के खुलते धागे. संसार उधड जाता है. आकाश फाडकर बिजली. गिरने सा अनुभव होता. धरती दिशा खोती है. वो चांद बिखर जाता है. तुम घर में ना होते जब. आकर किरन आंगन में. यूँ ही लौट जातें हैं. खिडकी पर थमकर झोंका. बस महक बिना जाता है. तुम घर में ना होते जब. बिते समय की याँदे. अवश्य सुने. नई पोस्ट. सदस्य...
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